कालिदास को एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण मिला। वह शास्त्रार्थ के लिए रवाना हुए। रास्ते में उन्हें प्यास लगी। सामने एक कुआं दिखाई दिया। पास ही झोपड़ी थी। झोपड़ी से एक बच्ची निकली। उसने कुएं से पानी भरा और जाने लगी। कालिदास ने उससे पानी मांगा। उस बालिका ने परिचय पूछा। कवि को लगा कि उनकी हेठी हो रही है। फिर भी वह बोले, बेटी, तुम छोटी हो। घर में कोई बड़ा हो, तो उसे भेजो। बालिका बोली, नहीं आप अपना नाम बताइए। थोड़ा सोचकर कालिदास बोले, मुझे नहीं पता। बालिका ने कहा, भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें। आपको तो सब याद रहना चाहिए। कालिदास फिर बोले, मैं बटोही हूं। बच्ची ने कहा, संसार में सिर्फ दो ही बटोही हैं। उन्हें जानते हैं, तो उनके नाम बताइए। कालिदास ने फिर न कह दिया। बच्ची बोली, तो सुनिए, बिना थके मंजिल तक जाने वाला ही बटोही है। ऐसे बटोही तो दो ही हैं, चंद्रमा और दूसरा सूर्य। दोनों बिना थके चलते हैं। आप तो अभी थक गए। कहकर बालिका घर में चली गई। तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली। वह भी कुएं पर गई। कालिदास ने उससे भी पानी मांगा। मजे की बात कि उसने भी परिचय पूछा। कालिदास ने अपने को मेहमान बताया। स्त्री ने कहा, संसार में मेहमान तो दो ही हैं। एक धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सही बताओ, तुम कौन हो ? हताश कालिदास ने कहा, मैं बड़ी देर से सहन कर रहा हूं। अब तो पानी पिला दें। स्त्री ने कहा नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो, फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम अपने बारे में गलत बता रहे हो। सही बताओ, तुम कौन हो? कालिदास ने इस पर झल्लाकर क्रम से अपने आपको हठी, और मूर्ख भी बताया। उस वृद्ध स्त्री ने इनका भी मर्म बता दिया और फिर सही बोलने के लिए कहा। कालिदास थक-हारकर पानी के लिए लगभग गिड़गिड़ाने से लगे। वृद्धा ने कालिदास से उठने के लिए कहा। कवि ने देखा, वृद्धा नहीं,भगवती सरस्वती खड़ी हैं। वह बोलीं, तुम्हें मान-प्रतिष्ठा का अहंकार हो गया था। तुम्हें वस्तुस्थिति का बोध कराना जरूरी था।
अष्टावक्र अद्वैत वेदान्त के महत्वपूर्ण ग्रन्थ अष्टावक्र गीता के ऋषि हैं। अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। 'अष्टावक्र' का अर्थ 'आठ जगह से टेढा' होता है। कहते हैं कि अष्तावक्र का शरीर आठ स्थानों से टेडा था। उद्दालक ऋषि के पुत्र का नाम श्वेतकेतु था। उद्दालक ऋषि के एक शिष्य का नाम कहोड़ था। कहोड़ को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान देने के पश्चात् उद्दालक ऋषि ने उसके साथ अपनी रूपवती एवं गुणवती कन्या सुजाता का विवाह कर दिया। कुछ दिनों के बाद सुजाता गर्भवती हो गई। एक दिन कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे तो गर्भ के भीतर से बालक ने कहा कि पिताजी! आप वेद का गलत पाठ कर रहे हैं। यह सुनते ही कहोड़ क्रोधित होकर बोले कि तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है इसलिये तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) हो जायेगा। हठात् एक दिन कहोड़ राजा जनक के दरबार में जा पहुँचे। वहाँ बंदी से शास्त्रार्थ में उनकी हार हो गई। हार हो जाने के फलस्वरूप उन्हें जल में डुबा दिया गया। इस घटना के बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। पिता के न होने के कारण वह अपने नाना उद्दालक को अपना पिता और अपने मामा श्वेतकेतु क...
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